Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 136( Eye for An Eye-5)

उनके जाने के बाद मैं अमर भाई की तरफ घूमा....

"Hiii, sir..."अपना हाथ अमर सर कि तरफ करके मैने कहा

"एक बुरी खबर है...या फिर कहे तो दो बुरी खबर है..."

"अब क्या हुआ..."

"पहली बुरी खबर ये कि नौशाद को होश आ चुका है और दूसरी बुरी खबर ये कि उसने पुलिस को तेरे खिलाफ बयान दिया है...."

"आप टेंशन मत लो, मैं संभाल लूँगा...."

"वो तो मैं जानता हूँ कि तू सब संभाल लेगा... वरना 2nd ईयर मे रहकर हॉस्टलर्स का राजा नहीं बनता... चल अच्छा,बाय...गुड नाइट..."

"गुड नाइट..."
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अमर के जाने के बाद मैने रूम अंदर बंद कर लिया,क्यूंकी मैं नही चाहता था कि अब ,जब मैं खुद को पुलिस से बचाने के बारे मे सोच रहा हूँ तो कोई नमूना आकर मुझे डिस्टरब कर दे.... अमर के जाने के बाद मैने बहुत सोचा...आधे घंटे तक लगभग मैं यही सोचता रहा कि अब आगे क्या करना है और आधे घंटे बाद मुझे मालूम चला कि इस केस मे कुछ  सोचने की ज़रूरत ही नही है... जो हुआ सारी दुनिया के सामने हुआ.. .मतलब की सबको पता है कि जब नौशाद की हॉस्टल  मे ठुकाई हुई तो मैं हॉस्पिटल मे अड्मिट था... हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ इसकी गवाही दे देगा और हॉस्पिटल से मै फॉर्मल कपडे  और कैप पहन कर निकला था... यदि कक्तव फूटेज चेक भी हुआ तो.. वो अरुण को ही समझेंगे... क्यूंकि हम दोनों का शरीर, हाइट same ही है और..CCTV मे मै ज्यादा ना आऊं.. इसलिए निकालते वक़्त हॉस्पिटल की लिफ्ट कि बजाय,पुराने आने जाने वाले रास्ते सीढीयो  उपयोग किया था.. जहा अब CCTV नहीं लगा है..."

जब मैं नौशाद वाली झंझट से अलग हुआ तो मेरा ध्यान मेरे रूम मे रहने वाले मेरे दोनो खास दोस्तो पर गया,जो आज यहाँ नही थे.... सौरभ और अरुण ,BHU से मिलने उसके कॉलेज गये थे और उन दोनो का प्लान कुछ  दिनो तक वही रुकने का था यानी कि अब मैं दो-तीन दिन अकेले इस रूम मे रहने वाला था. तभी अचानक मुझे याद आया कि कल मुझे कॉलेज भी जाना है और कॉलेज के मेरे सारे अस्त्र-शस्त्र का कोई आता-पता नही था....

"मेरा बैग ... आलमारी मे होगा..."सोचते हुए मैने आलमारी  खोली, मेरा बैग अंदर ही रखा हुआ था.

आज कॉलेज मे आए हुए मुझे लगभग 2 साल होने वाले थे और आज ये पहला मौका था जब मैं कॉलेज जाने के एक दिन पहले अपना बैग  भर रहा था, जैसे स्कूल टाइम पे हम सब करते थे. लेकिन जब से कॉलेज आया था, तब से तो एक कॉपी बस बैग मे था... उसी मे सभी के नोट्स लिखता.. फिर चाहे वो लैब का ही क्यों ना हो.. और कमाल कि बात है की दो साल मे वो कॉपी भरी तक नहीं नहीं थी 🤣 . बैग  भरते वक़्त मुझे ध्यान आया कि मेरे पास तो 4th सेमेस्टर का कोई मेटीरियल ही नही है ,अब कल कॉलेज मे जाकर  हिलाउन्गा क्या... मुझे तो सब्जेक्ट्स के नाम तक नहीं मालूम अभी तक.  खत्म जिंदगी है, साला अपनी. बाथरूम मे जाकर मैने टॉवेल  पानी से भीगोया और वापस आकर पानी मे भीगे टॉवेल  से अपने कॉलेज को मस्त चमका कर,एक पेन और एक कॉपी डाल दी.....

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"इस सेमिस्टर. मे 12 पेपर देने है...मतलब की पढ़ना पड़ेगा... "मैने खुद से कहा और खिड़की खोलकर एक सिगरेट जलाई....

और जब सिगरेट जलाई तो दिल भी जला और जब दिल जला तो ईशा कि याद आना लाजिमी था.. कितने दिन से नहीं देखा उसको... भले ही उसे मै नहीं पसंद या हालत कितने भी बुरे रहे हो, भले ही उसके दिल मे मेरे लिए कितना भी कड़वापन क्यूँ ना भरा हो... लेकिन उसके लिए दिल तो कल भी धड़कता था और आज भी धड़क रहा है.... मुझे अब भी याद है कि जब मैं कोमा से वापस होश मे आया था तो ऐश के बारे मे सोचने लगा था....

मैं उस समय ये सोच रहा था कि शायद मेरी ये हालत देखकर ईशा  मुझसे मिलने आएगी, मिलने नहीं तो कम से कम एकात कॉल -वाल  तो करेंगी ही... चलो कॉल को हटाओ, मेसेज तो अवश्य करेंगी.  जब मुझे होश आया तो मुझसे मिलने के लिए,मेरा हाल चाल जानने के लिए तक़रीबन मेरे सभी जान-पहचान वाले आए... सिवाय दो को छोड़ कर. एक सिदार  था तो दूसरी ईशा ... सिदार  तो खैर बहुत दूर जा चुका था ,इसलिए उससे मिलने की मुझे हाल फिलहाल मे कोई उम्मीद नही थी.. लेकिन ईशा  का इंतज़ार मैं हर दिन करता था इस उम्मीद के साथ की शायद आज वो दिन है,जब वो भूरी आँखो वालो लड़की ,अपना गाल फुलाए मुझसे मिलने आएगी,दो चार बाते करेगी, फिर मै उससे थोड़ा बहुत लड़ूंगा... लेकिन वो दिन कभी नही आया. ईशा  मुझसे मिलने हॉस्पिटल कभी नही आई. दिल थोड़ा उदास तो हुआ लेकिन फिर मैने खुद को ये कहकर राज़ी कर लिया कि,शायद उसे खबर ही नही होगी कि मुझे होश आ गया है, या फिर मैं किस हॉस्पिटल मे एडमिट हूँ... .लेकिन मैं ये जानता था कि सच ये नही है क्यूंकी जहाँ मेरे होश मे आने की खबर पूरे कॉलेज को थी,वहाँ ये खबर ईशा  के कानो तक ना पहुँचे ये हो ही नही सकता था.... पर दिल को समझाना पड़ता है,झूठ बोलकर.. सो,मैने भी वही किया
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"अरमान भैया...दरवाजा खोलो.."

इस आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा .कोई मेरे रूम के दरवाजे को ज़ोर से पीट रहा था....

"तेरी माँ का आल्फा,बीटा ,गामा ...कौन है बे..."

"अरमान भैया मैं हूँ , राजश्री पांडे..."

"राजश्री पांडे..."मैने टाइम देखा,रात के 2 बज रहे थे"इसे तो अपने फर्स्ट ईयर वाले हॉस्टल  मे होना चाहिए था,ये यहाँ सीनियर हॉस्टल मे क्या कर रहा है...."

"वॉर्डन से लड़ाई हो गयी अरमान भैया..."मेरे गेट खोलने के बाद लड़खड़ाते हुए राजश्री पांडे अंदर आया और पीछे मुड़कर किसी और को भी अंदर आने के लिए कहा.,जिसके बाद 5-6 लड़के एक साथ मेरे रूम के अंदर आ गये....

"निकलो बे सब,ये अपुन के सोने का टाइम है... रंडीखाना समझ रखा है क्या.."उन सब जूनियर्स को अपने रूम के अंदर घुसता देख जबरदस्त गुस्सा के साथ मैने कहा

"क्या भैया, इतनी जल्दी सोकर क्या करोगे,अभी तो रात के 2 ही बजे है..."बोलते हुए वो मेरे बिस्तर पर पहले बैठा और फिर लेट गया...

"पहली बात तो ये कि..."उसे पकड़ कर ज़मीन मे फेंकते हुए मैं बोला".... पहले पूरा लफडा बताओ, कि क्या हुआ वार्डन के साथ और दूसरी बात ये कि मेरे बिस्तर को किसी ने टच भी किया तो इसी बिस्तर पर पहुडा का ठोक दूँगा...साला आज ही नयी चादर डाली है... तुम जैसे हिलाऊ लोगो का कोई भरोसा नहीं.. दागदार कर दोगे मेरा चादर "
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"अब का बताये अरमान भैय्या... बकलोलवा, पॉवर दिखा रहा था वो वॉर्डन.."राजश्री पांडे बोला"साला होशियारी दे रहा था अपुन के सामने, बोल रहा था कि यदि हॉस्टल  मे रहना है तो रात को सही टाइम पे आओ ,वरना मत आओ.."

"फिर...? "

"फिर क्या, मेरा मुंडा सटक गया और साले वार्डन को बहुत मारा, पर फिर मेरी फट गई तो भाग कर सीधे इधर आएला हूँ ,आपके पास..."

"इधर क्या अब मुझसे लड़ने आया है,चल भाग यहाँ से..."घूरते हुए मैने कहा

"क्या अरमान भाई...मैने सोचा था कि आज रात आपके हॉस्टल  मे रुकुंगा और सुबह निकल लूँगा...."
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पहले मैने सोचा कि उन सबको लात मार के भगा दूं,लेकिन फिर ख़याल आया कि ,अपने ही लौन्डे है.. लड़ाई झगड़े मे साथ देते रहते है,इसलिए इनकी मदद करना तो मेरा फ़र्ज़ बनता है और ऐसे छोटे -मोटे मामले मे यदि इनका साथ दे दिया तो फिर ये मेरे कर्जदार बन जाएंगे और मेरे बड़े -बड़े लफड़ो मे आज कि दुहाई देकर मै इनका इस्तेमाल कर सकता हूँ... Wow, awesome Plan, Arman....

"एक शर्त पर मैं तुम सबको यहाँ रुकने के लिए कहूँगा...आक्च्युयली एक नही दो शर्त पर...मतलब कि तीन शर्त पर..."

"अरे आप हुक़ुम करो..आपके लिए तो जान भी हाज़िर है ,यहाँ तक कि मेरे जेब मे पड़ी राजश्री के 10 पैकेट  आपको दे दूं... बस माँग मत लेना "

"ना तो मुझे तेरी राजश्री चाहिए और ना ही तेरी जान....मेरी पहली शर्त ये है तुम मे से कोई भी बिस्तर पर नही सोएगा..."

"क़ुबूल है, क़ुबूल है..."वो सब एक साथ चिल्लाए

"मेरी सिगरेट कोई नही पिएगा..."

"क़बूल है, क़ुबूल है ..."वो सब एक बार फिर एक साथ चिल्लाए...

"और कोई पोर्न वीडियो देखकर रूम के अंदर नहीं हिलायेगा... वरना तुम्हारा ही काट कर तुम्हारे ही मुँह मे दे दूंगा ..."

"अरे आप टेन्षन नक्को करो, मुझे आपकी सब शर्त मंज़ूर है..."ज़मीन से खड़ा होकर राजश्री पांडे मेरे पास आया और मेरे कंधे पर एक हाथ रखकर दूसरे हाथ से अपना सीना जोर से ठोकते हुए बोला

"देखो अरमान भाई... मैं एक किसान का बेटा हूँ और ज़मीन से जुदा हुआ आदमी हूँ. इसलिए ज़मीन मे सोने मे मुझे कोई दिक्कत नही होगी और मेरे पास ऑलरेडी सिगरेट की दो-दो पैकेट  है...एक आप भी रख लो..."बोलते हुए उसने सिगरेट की एक पैकेट  निकाली और मेरे जेब मे डाल दी...

"थैंक्स  और तीसरी शर्त याद है ना..."

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